Last modified on 16 जून 2008, at 05:44

कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:44, 16 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKrachna |रचनाकार = कुंवर नारायण }} तुम अभी आग ही आग मैं बुझता चिराग हवा ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:KKrachna

तुम अभी आग ही आग

मैं बुझता चिराग


हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से

पकड़ता एक किरण का स्पन्द

पानी पर लिखता एक छंद

बनाता एक आभा-चित्र


और डूब जाता अतल में

एक सीपी में बंद


कभी पाना मुझे

सदियों बाद

दो गोलार्धों के बीच

झूमते एक मोती में ।