भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण
Kavita Kosh से
तुम अभी आग ही आग
मैं बुझता चिराग
हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से
पकड़ता एक किरण का स्पन्द
पानी पर लिखता एक छंद
बनाता एक आभा-चित्र
और डूब जाता अतल में
एक सीपी में बंद
कभी पाना मुझे
सदियों बाद
दो गोलाद्धों के बीच
झूमते एक मोती में ।