छक नाँकी / मनीष कुमार गुंज
हम्में ते बच्चा छी अखनी,
तोंय दादा परदादा छो
हमरा लूर चवन्नी भर,
तोंय क्वींटल से भी जादा छो।
तोरो अजलत करतब देखी,
बूतरू रहलै बक नाँकी
कहभौन ते लागथैन छक नाँकी।
सब दिन से बोलै छै सब्भे,
‘‘हम हैं दो हमारे दो’’
खदर-बदर देखी दूध कट्टृ,
सब छै आँख के तारे हो।
याद पड़ै छै जखनी,
तखनी कानै छै मन फक नाँकी
कहभौन ते लागथैन छक नाँकी।
सन सोले के अजब तमाशा,
शराब बन्दी व नोट बन्दी
त्राहीमाम शराबी बोलै,
ब्यापारी में छै मन्दी नाँकी
कहभौन ते लागथैन छक नाँकी।
झख मारौ हम्मं बीच सड़क पर,
तोरो घर झक-झक नाँकी
कहभौन ते लागथैन छक नाँकी।
पूछै में लागै छै हक्का,
मतर जरा बतलाबोॅ कक्का
साथें रोज मंजूरी करलौं,
हमरोॅ माँटी तोर पक्का
लागथौन जब धक्का हो कक्का,
नशा टूटथौन भक नाँकी।