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फिर आएगा वसन्त / आरती तिवारी

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हम जो निराश होकर बैठे हैं
खुद की ही गाँठों में बंद

भरोसा करते हैं अब
कि आएगा वसन्त
डालेगा बसेरा हमारे आँगन में
पीले नीले मिल नारंगी रंगो से
पूर पूर देगा हमारे गलियारे

खेतों में,बागों में,गली कूचों में
हौले से बिखर जायेगा जैसे बिखर जाती है खुशबू

सांसों की सरगम में,राग भोर का गायेगा,चूमेगा वल्लरी से झरती कलियों को

फ़ैल जायेगा जादुई उजाला सवेरे की रेशमी झालर में झिलमिल सा

टेसू के रंग में घुल जायेगी
उसके आने की आहट

कोयल गायेगी मादक गीत
भौरों की गुनगुन में उसकी आमद का संगीत स्वर लहरियों में नाचने लगा है

अपने गिटार के तारों को छूकर छेड़ते ही वो उखाड़ फेंकेगा तुम्हारी उदासी की केंचुल
पपड़ाये होंठ हिलने लगेंगे और फिर से जीने लगेंगे

उसके आते ही होगा एहसास अनोखा तृप्ति का
जी उट्ठेगा जग सारा देखना

निराशा के अँधेरे को चीर कर आयेगा वसन्त
वसंत हमारे लिए आशा का गुब्बारा होगा
जो कभी नहीं फूटेगा.