कविता,झाँकती है यादों के झरोखे से शब्द बुहारते हैं अन्तराल की धूल अर्थ ठकठकाते हैं विस्मृति के किवाड़ और एक परी करती है अठखेलियाँ मेरे मन के आँगन में तुम चुपके से जाने कब पढ़ लेते हो मेरी कविता और मैं फिर से जी उठती हूँ