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किसान / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
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तन के बहा पसीना हम तो धरती के तर कइली।
बालू सड़ल झरल हे मोती जिनगी में सुख पइली॥
हरियर हरियर खेतन में अरमान हमर हरियायल।
कँटवन में भी फूल उगल हे मनमा हे हरसायल॥
ले मस्ती हम घूम रहल ही सुत्थर आरी-आरी।
एसों उगल रहल धन धरती विहँसल खेत कियारी॥
दूर-दूर तक धनहर खेती में फइलल हरियाली।
झूम रहल अब हर किसान हे देख धान के बाली॥
चूग रहल पंछी हे दाना ले के हरियर बाना।
चहक-चहक खेतन में उड़ के गुन गुन गावे गाना।
उजड़ल मड़ई भी मुसकायल सजलइ घर के बाना।
उगल फसल के देख न कोई देतइ हमरा ताना॥
मुसकइलइ घरवा के कोठी घर अँगना के कोना।
हरवाही के फल मिल गेलइ भरलइ घर में सोनो॥
थिरक रहल चेहरा पर उनका बन के सुत्थर लाली।
तितली बन के कुरच रहल हे घर-घर में घरवाली॥