भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या कहोगे / जगदीश गुप्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:25, 6 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश गुप्त |अनुवादक= |संग्रह=नाव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
क्या कहोगे?
भर रहा है नीर टूटी नाव में —
यह जानकर भी
उसी पर आँख गड़ाए
सन्धि पर आता हुआ जल देखता-सा
डूबने की कल्पना से मुक्त
अपने आप में डूबा
अडिग — निश्चेष्ट जो बैठा हुआ हो छोड़कर पतवार
खेवनहार
उसको क्या कहोगे?