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चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध'
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चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध'
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जन्म | |
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उपनाम | विदग्ध |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध' / परिचय |
कविताएँ
- कराता भगवान है / 1 / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- आती हैं घड़ियां मिलन की बडे शुभ संयोग से / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कराता भगवान है / 2 / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- नया जमाना / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- ओछी समझ पाकिस्तान की / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सही संस्कार आवश्यक है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- यादें / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- दुर्बल होते जाते है अब आपस के विश्वास / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- परिवेश में है उजाला कम, धुयें की भरमार है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- पर्यावरण संरक्षण / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कायस्थ समाज के तरूणो के प्रति / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- चाहते सब विश्व में हो शांति सुख का मधुमिलन / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- आध्यात्मिकता का रवि दिखलाता पर पूरा आकाश है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- चार मुक्तक / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- नया साल -नये ख्याल / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- नीति के दोहे / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- मुक्तक / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- जो असीम नभ होता विस्तृत उसकी भी होती सीमायें / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सबके अपने मनोभाव है कोई किसी को क्या समझाये / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- निर्धारित करना पडता है मन को उसे कितना जाना है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- हर समाज में रखनी पडती व्यवहारो की मर्यादाये / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कुछ को विस्तृत राजमहल भी छोटा बहुत नजर आता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- वस्त्रो का भंडार अपरिमित भी थोडा माना जाता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- जो लेते निर्वसन जिंदगी जग मे कई ़ऋषि मुनि सन्यासी / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कटने को तो सारा जीवन एक कमरे मे कट जाता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- अपने कर्मो के बल ही इस जग मे कोई पूजा जाता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- औेर कोई धिक्कारा जाता पाकर सजा जेल जाता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- खुद के सोच और कर्मो से मानव अपना भाग्य बनाता / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- मन न को मन किब क्या करता कुछ भी नहीं समझा आता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- मानव पूज्य देव बन जाये / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कर सकते कई काम अनोखे मन के शुभ संकल्प हमारे / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- धर्माचार्यो का दुराचार / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- देश के हर व्यक्ति मे ईमानदारी होना चाहिये / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सरस्वती वंदना / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- पर्यावरण शुद्धि आवश्यक / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- हमारा प्यारा नगर जबलपुर / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- निरर्थक हो हल्ले का है तर्क क्या? / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कमी सी हो गई है जग में सही सोच विचार की / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- दोहे / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- पूॅछना है सिर्फ एक ही प्रश्न पाकिस्तान से / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सिर्फ मन की ईर्श्या को त्यागना है। / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- समस्या का हल नहीं है युद्ध है सद्भाव / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- पर्यटन / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- शांति सुख हेतु उपचार / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सुभद्रा कुमारी चौहान / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कभी अनचाहा जो जाता है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- चलो गॉव की ओर जमाना बदल रहा है। / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- जग करिश्मा है मन की खुशी का / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- आत्म ज्ञान / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- हो नष्ट अनाचार, प्रेम का प्रसार हो / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- जन जागरण कहॉ है / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सीमा सुरक्षा सेनानियों से / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कहीं न दिखता भारत के गॉंवो सा सुदंर शहर अजाना / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- गाँव हमारा / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- गजल / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- मन / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- एक माचिस की सलाई सी गई हो जिंदगी / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- बी.एन. / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- चार मुक्तक / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- दोहे / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- कब होंगी हवायें सुखदायी / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
- सार्थक जीवन / चित्रभूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’