भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन्दगी दो चार दिन / मृदुला झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्यार के हकदार दिन।
है सियासत का ये फन,
बन गए व्यापार दिन।
वहशियों के दंश को,
रो रहा बेजार दिन।
ज़िन्दगी की नाव का,
बन गया पतवार दिन।
सच का दामन थामना,
चाहता हर बार दिन।
गुरुजनों के नेह का,
मानता आभार दिन।
प्यार जब रुखसत हुआ,
हो गया दुश्वार दिन।