भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 7 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKPustak |चित्र= |नाम=हम खड़े एकांत में |रचनाकार=कुम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हम खड़े एकांत में
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | कुमार रवींद्र |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- देवा चुप हैं / कुमार रवींद्र
- सुरज देवता हुए अपाहिज / कुमार रवींद्र
- सुखी रहे दिन / कुमार रवींद्र
- पड़ा सूना देवचौरा / कुमार रवींद्र
- सुनिए राजन / कुमार रवींद्र
- फिर कभी जब आयेंगे / कुमार रवींद्र
- भीजे दास कबीर / कुमार रवींद्र
- सूने सारे ड्योढ़ी-द्वारे / कुमार रवींद्र
- शाश्वत, सच है / कुमार रवींद्र
- खुली खिड़की / कुमार रवींद्र
- सागर-तट है / कुमार रवींद्र
- गीत-मन संकट में / कुमार रवींद्र
- सुबह के राख होने की कथा / कुमार रवींद्र
- साँझे आँसू-हँसी-दुआएँ / कुमार रवींद्र
- छज्जे पर है धूप ज़रा सी / कुमार रवींद्र
- हम मूरख हैं / कुमार रवींद्र
- साधू लेटा ऑंखें-मूँदे / कुमार रवींद्र
- साँझ हुई / कुमार रवींद्र
- चट्टानी है शहर / कुमार रवींद्र
- बहुत कठिन है / कुमार रवींद्र
- अरे काश्वी / कुमार रवींद्र
- कहो, भला कैसे / कुमार रवींद्र
- सूर्यरथ के थके घोड़े / कुमार रवींद्र
- अब तो चेतो / कुमार रवींद्र
- हुआ फ़रेबी हिरदय / कुमार रवींद्र
- नदी दुखी है / कुमार रवींद्र
- देखो तो / कुमार रवींद्र
- दोहा-गीत / कुमार रवींद्र
- इक अचरज का खेला देखा / कुमार रवींद्र
- घना अँधेरा हुआ अवध में / कुमार रवींद्र
- साधो, अबके किशन-कन्हैया / कुमार रवींद्र
- बन्धु, समय के चक्रव्यूह में / कुमार रवींद्र
- इस खिड़की से / कुमार रवींद्र
- तैर रहा इतिहास नदी में / कुमार रवींद्र
- प्रजा दुखी है / कुमार रवींद्र
- उजियारे बुझते तारे में / कुमार रवींद्र
- रात हुआ क्या / कुमार रवींद्र
- महापंत ने कहा / कुमार रवींद्र
- वक्त हो रहा अगियापाखी / कुमार रवींद्र
- हवा में ज़िक्र सूरज का / कुमार रवींद्र
- देहली-आँगन-कुआँ बुढ़ाये / कुमार रवींद्र
- धुंध नदी पर / कुमार रवींद्र
- गीत-बीज / कुमार रवींद्र
- हिरदय में अनबोले पड़े रहे / कुमार रवींद्र
- पूर्वजों ने रची पगडंडी / कुमार रवींद्र
- हम गुज़रे अकेले / कुमार रवींद्र
- अभी सुबह के चार बजे / कुमार रवींद्र
- देश-काल गति कठिन / कुमार रवींद्र
- घर की पुरा-कथाएँ / कुमार रवींद्र
- घाम ओढ़ हँस रही डगर है / कुमार रवींद्र
- खड़े रामजी निपट अकेले / कुमार रवींद्र
- तुम क्या जानो / कुमार रवींद्र
- युग बीता / कुमार रवींद्र
- दुखी बहुत कबिरा की कासी / कुमार रवींद्र
- हवाओं ने किया उत्पात / कुमार रवींद्र
- हम अपने ही सिरजे जंगल में खोये / कुमार रवींद्र
- उधर देखो सूर्यरथ को / कुमार रवींद्र
- सुनो प्रजाजन / कुमार रवींद्र
- आँगन बँटा / कुमार रवींद्र
- घटनाओं के जंगल में / कुमार रवींद्र
- इच्छाओं को ऋतु होने दो / कुमार रवींद्र
- हवा कह रही / कुमार रवींद्र
- हमने जो कुछ रचा / कुमार रवींद्र
- पोथियों में ही बचे हैं दुआघर / कुमार रवींद्र
- हम समय के चाक पर / कुमार रवींद्र
- हम हैं गीतों के अभ्यासी / कुमार रवींद्र
- विषजीवी हो रहे हुकुम सब / कुमार रवींद्र
- परजाजन मुँह ताक रहे / कुमार रवींद्र
- बसे हिरदय ढाई आखर / कुमार रवींद्र
- हाँ, यह सच है / कुमार रवींद्र
- कहीं दूर बज रही बाँसुरी / कुमार रवींद्र
- बरसों पहले / कुमार रवींद्र
- हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- प्रजाजनों / कुमार रवींद्र
- यह शहर नया है / कुमार रवींद्र
- सुबह से सूर्यास्त होता / कुमार रवींद्र
- हम मूरख हैं / कुमार रवींद्र
- शव पड़े हैं राजद्वारे / कुमार रवींद्र
- गाँव-पुरवे भी दहे हैं / कुमार रवींद्र
- दिन सूरज के पूत नहीं / कुमार रवींद्र
- किसे दोष दें / कुमार रवींद्र
- अंधे कालखण्ड के साखी / कुमार रवींद्र
- कहो घाट पर / कुमार रवींद्र
- सबके गुइयाँ एक रामजी / कुमार रवींद्र
- राजाओं के खेले में / कुमार रवींद्र
- हम खड़े हैं द्वीप पर / कुमार रवींद्र
- अभयारण्य राजधानी में / कुमार रवींद्र
- बंधु, करें क्या / कुमार रवींद्र
- बादल-बिजुरी-बरखा आये / कुमार रवींद्र
- आँगन का इतिहास हमारा / कुमार रवींद्र
- नदी सूखी / कुमार रवींद्र
- कर्महीन हम / कुमार रवींद्र
- साईं सबका, बंधु, एक ही / कुमार रवींद्र
- दैव बली है / कुमार रवींद्र
- रँभा रहीं कान्हा की नावें / कुमार रवींद्र
- कौन पढ़े सूरज की पाती / कुमार रवींद्र
- पुरखे नहीं रहे / कुमार रवींद्र
- अब इस घर में / कुमार रवींद्र
- सभी सुखी हों / कुमार रवींद्र