भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किरणें / पवन चौहान
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:34, 9 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मंद-मंद मुस्कुराती किरणें
मधुर मुस्कान बिखराती हुई
मेरे ऑंगन में आकर
उजाला करके घर में मेरे
आज सवेरे-सवेरे
रोज खिड़की से अंदर आती हैं
जाली से छनकर
षीशे को चीर
मुझे जगा जाती हैं
मैं उस दिन उदास हो जाता हूँ
जिस रोज वे नहीं आतीं
और एक माँ की तरह चुमकर
मुझे नहीं जगाती
मुझे किरणों की अठखेलियां लुभाती हैं
जब भी मेरे पास आती हैं
नया सवेरा लाती हैं
आज...
ऑंखों पर पड़ते ही
नींद मेरी खुलते ही
किरणें हॅंस पड़ीं
बोली- हैलो, क्या हाल हैं?
मैं अंगड़ाई लेकर हॅंस पड़ा
बोला- आइए, आपका स्वागत है।