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लफ़्ज़ों का पुल / निदा फ़ाज़ली

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मस्जिद का गुम्बद सूना है
मंदिर की घंटी खामोश
जुज्दानो मे लिपटे सारे आदर्शों को
दीमक कब की चाट चुकी है
रंग !
गुलाबी
नीले
पीले कहीं नहीं हैं
तुम उस जानिब
मैं इस जानिब
बीच में मीलों गहरा गार
लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है
तुम भी तनहा
मैं भी तनहा।