भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुमान / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कच्ची नींद में हूँ
और अपने नीमख़्वाबिदा तनफ़्फ़ुस में उतरती
चाँदनी की चाप सुनती हूँ
गुमाँ है
आज भी शायद
मेरे माथे पे तेरे लब
सितारे सबात करते हैं