भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्थरों में गोताखोरी-3 / वेणु गोपाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 5 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्थरों के भीतर
गोता ख़ोर पाता है

कि संगीत के बावजूद
कि रिश्तों के बावजूद
कि वक़्त के बावजूद

व्ह
अकेला है

और
उसके
अकेलेपन को
भी

पत्थरों में
शुमारा जा रहा है।

रचनाकाल : 18 मई 1980