भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मसंहार / विजयाराजमल्लिका / सन्तोष कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:48, 19 जून 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयाराजमल्लिका |अनुवादक=सन्तोष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नीचे एक छत के
दो लोग
साथ लगे बिस्तरों पर
जी रहे श्रापित जीवन
दोनों ही क़ैदी हैं
दो मानव-बम
फूट पड़ने वाले कभी-भी
वो दाईयाँ
जिन्होंने सुला दिए
अपने हसीन सपने
वो शानदार पल
जि्न्होंने एक किया था उन्हें
बिना समझौते के
क़ैदी हैं वे
उस घर के
वे जी रहे असन्तोष में —
एक वुमन हैं और दूसरी
ट्रांस-वुमन !
दुनिया के लिए
वे हैं… एक महिला और एक पुरुष
ओह ये नाउम्मीद दुनिया
तारीफ़ें करती नहीं थकती
कि वे हैं
आदर्श पति-पत्नी !
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सन्तोष कुमार