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शाम का गीत / नवनीता देवसेन

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तुम्हारे नाम की प्रभा ने ज्योतिर्मय कर दी है शाम
स्निग्ध हँसी में बिछा दिया है मख़मल का बिछौना
दोनों आँखों में छेड़ दिया है तुमने शाम का गीत
नक्कारख़ाने की मानिंद दूर तक तैरता जाता है वह स्वर
अब चाहिए फूल, यह शाम फूलों की शाम है
आसमान के बगीचे में कांतिमय तारे-फूल खिल उठेंगे
खोई हुई गंध बनकर फिर आएगा मुलायम अंधेरा
झर जाएंगे उजाले के कोमल फूल आँखों के बिछौनों पर
ठीक हृदयविभा-सी स्निग्ध, उज्ज्वल तारों की सुरभि
बिला जाएगी हँसी के मख़मल में।
मैंने अंजलि में थाम रखा है शाम का सुख
थरथराती गुनगुनी गौरैया, मुलायम, जीवंत, पक्षधर
अस्थिर व्याकुल पहर,
शाम के गीत और नक्षत्रों की सुगंध में
उतर आती है थरथराती रात
अंजुरी-बंध में कांपती है पहर के डैनों की उड़ान
ज़रा-सा अनमना होते ही
उंगलियों की सींखें तोड
उड़ जाएगी लक्ष्यहीन शून्य में -
अधखुली अंजुरी में पड़ी रहेगी गुनगुनी सिहरन
अशेष प्रार्थना की तरह पड़ा रहेगा अफ़सोस
इसीलिए मैं साँस रोक कर
इसीलिए मैं इतनी व्याकुल और अतृप्त रह रही हूँ।


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी



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 नवनीता देवसेन
 
 लड़की
 दुःख ने उस पर धावा बोला था
 भागती-भागती लड़की और क्या करती ?
 उसने हाथ की कंघी ही
 दुःख को फेंक कर दे मारी --
 और तुरंत ही
 कंघी के सैकड़ों दांतों से
 उग आए हज़ार-हज़ार पेड़
 हिंसक पशुओं से भरा जंगल
 शेर की दहाड़ और डरावने अंधेरे में
 कहीं खो गया
 दुःख --
 डर ने उस पर धावा बोला था
 भागती-भागती लड़की और क्या करती ?
 उसने हाथ की छोटी-सी इत्र की शीशी ही
 डर को फेंक कर दे मारी --
 और तुरंत ही वह इत्र
 बदल गया फेनिल चक्रवात में
 तेज़ गर्जन में
 कई योजन तक व्याप्त
 हिंसक गेरुई धारा में
 कहीं बहा ले गया
 डर को --
 प्रेम ने जिस दिन उस पर धावा बोला
 लड़की के हाथों में कुछ भी नहीं था
 भागती-भागती क्या करती वह ?
 आखि़र में सीने में से हृदय को ही उखाड़ कर
 उसने प्रेम की ओर उछाल दिया,
 और तुरंत ही
 वही एक मुट्ठी हृदय
 
 काले पर्वत की श्रेणियां बन कर
 सिर उठाने लगे,
 झरनों, गुफाओं, चढ़ाई, उतराई में
 रहस्यमय
 उसकी खाइयों उपत्यकाओं में
 प्रतिध्वनि कांप रही है
 
 तूफ़ानी हवाओं की, झरनों की --
 उसकी ढलान पर छाया,
 और शिखर पर झिलमिला रहे हैं
 चंद्र सूर्य,
 उसी झलमल भारी हृदय ने ही शायद
 उसकी प्रेमिका के भयभीत प्रेम को
 बढ़ने नहीं दिया था,
 ओह!
 इस बार थकन ने उस पर धावा बोला है
 ख़ाली है उसके हाथ, ख़ाली है सीना
 भागती, भागती क्या करती वह ?
 इस बार लड़की ने पीछे की ओर
 फेंक कर मारी सिर्फ़ गहरी सांसें --
 और तुरंत ही
 उन सांसों के गर्म प्रवाह से
 जल उठा उसका समूचा अतीत
 दशों दिशाओं में बिखर गए
 उड़ते जलते रेगिस्तान
 अब वह लड़की निश्चिंत होकर भाग रही है
 सिर के ऊपर उठा रखे हैं दोनों हाथ--
 ख़ैर,
 इस बार उसकी मंज़िल ने ही
 उस पर धावा बोला है.
 00
 मूल बँगला से अनुवादः
 उत्पल बैनर्जी