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ओस / अनातोली परपरा
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सुबह घास पर दिखे घनी
रत्न-राशि की कनी
नीलम-रूप झलकाए
हरित-मणि-सी छाए
कभी जले याकूत-सी
स्फटिक शुचि शरमाए
करे धरती का शृंगार
लगे मोहक सुभग तुषार
पल्लव-पल्लव छाए
बीज को अँखुआए
बने वह स्वाति-मुक्ता
चातक प्यास बुझाए
दुनिया में जीवन रचती
इसके बिना न घूमे धरती