भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरी आवाज़ / रवीन्द्र दास
Kavita Kosh से
Bhaskar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 21 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: आइना है तेरी आवाज़ जहाँ दिखती है मुझे अपनी मुकम्मिल शक्ल हो उठता...)
आइना है तेरी आवाज़
जहाँ दिखती है मुझे
अपनी मुकम्मिल शक्ल
हो उठता हूँ जीवित
सुनकर तेरी आवाज़
अंधेरों में भी
सूझ पड़ता है रास्ता
हो जाता हूँ शामिल
दुनिया में
नई ताजगी
और नए विश्वास के साथ ,
जब सुनता हूँ -
तेरी आवाज़