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किस-किस तरह से मुझको / शहरयार

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लेखक: शहरयार

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किस-किस तरह से मुझको न रुसवा किया गया
ग़ैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया

निकला था मैं सदा-ए-जरस की तलाश में
भूले से इस सुकूत के सहरा में आ गया

क्यों आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यों आज उस का नाम मेरा दिल दुखा गया

इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया