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नया अमृत / शहरयार
Kavita Kosh से
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लेखक: शहरयार
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दवाओं की अलमारियों से सजी
इक दुकान में
मरीज़ों के अन्बोह में मुज़्महिल सा
इक इन्साँ खड़ा है
जो इक कुबड़ी सी शीशी के
सीने पे लिखे हुए
इक इक हर्फ़ को ग़ौर से पढ़ रहा है
मगर इस पे तो ज़हर लिखा हुआ है
इस इन्सान को क्या मर्ज़ है
ये कैसी दवा है