भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भारती वन्दना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 28 अक्टूबर 2006 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

भारति, जय, विजय करे कनक - शस्य - कमल धरे!

लंका पदतल - शतदल गर्जितोर्मि सागर - जल धोता शुचि चरण - युगल स्तव कर बहु अर्थ भरे!

तरु-तण वन - लता - वसन अंचल में खचित सुमन, गंगा ज्योतिर्जल - कण धवल - धार हार लगे!

मुकुट शुभ्र हिम - तुषार प्राण प्रणव ओंकार, ध्वनित दिशाएँ उदार, शतमुख - शतरव - मुखरे!