Last modified on 23 फ़रवरी 2009, at 20:54

रात की तरह मृत्यु / अनीता वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 23 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता वर्मा |संग्रह=रोशनी के रास्ते पर / अनीता व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात की तरह
मृत्यु की
परछाईं नहीं होती

वह सिर्फ़
हमें आग़ोश में
ले लेती है

हम छटपटाते हैं
सिर धुनते हुए
वापस लौटने को तत्पर

सुरंग के
दूसरे छोर पर
दिखता है एक हल्का प्रकाश
कुछ प्रिय चेहरे गड्ड-मड्ड

हमें
वहीं जाना होता है
बार बार
उन चेहरों का हिस्सा बनने।