भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात की तरह मृत्यु / अनीता वर्मा
Kavita Kosh से
रात की तरह
मृत्यु की
परछाईं नहीं होती
वह सिर्फ़
हमें आग़ोश में
ले लेती है
हम छटपटाते हैं
सिर धुनते हुए
वापस लौटने को तत्पर
सुरंग के
दूसरे छोर पर
दिखता है एक हल्का प्रकाश
कुछ प्रिय चेहरे गड्ड-मड्ड
हमें
वहीं जाना होता है
बार बार
उन चेहरों का हिस्सा बनने।