भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिड़की / इब्बार रब्बी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:05, 23 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इब्बार रब्बी |संग्रह=वर्षा में भीगकर / इब्बार र...)
उसकी खिड़की पर
लोहे की सलाख को
पहली बार
लपेटा
अँखुए ने।
ओह! बेल
यह क्या किया!
नवजात
गंधाते
मृणाल को
तूने लपेटा सलाख से।
किसके गले में डाल दँ
ये आदिवासी बाहें!
रचनाकाल : 1967