Last modified on 14 जुलाई 2009, at 13:21

बारिश के बाद / इला प्रसाद

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:21, 14 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला प्रसाद }} <poem> बाद बारिश के मिट्टी से उठती हुई ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाद बारिश के
मिट्टी से उठती हुई
सोंधी खुशबू
यहाँ नहीं मिलती।
 
सब्जियों में स्वाद, फ़ूलों में सुगन्ध
सम्बन्धों में आत्मीयता
नहीं मिलती।
 
सतह पर सब सुखद था
जब तक भीगे नहीं थे।
 
यह तो बारिश के बाद का सच है!