भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़म न हो पास / जानकीवल्लभ शास्त्री

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 21 दिसम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: जानकीबल्लभ शास्त्री

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

ग़म न हो पास इसी से उदास मेरा मन ।

साँस चलती है, चिहुँक चेतता नहीं है तन ।।


नींद ऐसी न किसी और को आई होगी,

जाग कर ढूँढती धरती कहाँ है मेरा गगन ।


मौसमी गुल हो निछावर, बहार तुम पर ही,

क़ाबिले दीद ख़िजाँ में खिला है मेरा चमन ।


भूलकर कूल ग़र्क़ कश्तियाँ हुईं कितनी,

लौट मझधार से आया चिरायु ख़ुद मरण ।


बुलबुलों ने दिया दुहरा कलाम ग़ंचों का,

गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन ।