भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँचा:KKEkMoti
Kavita Kosh से
एक काव्य मोती |
प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥
एक जीव एक ब्रह्म कहावे सूर श्याम झगरो ।
अब की बेर मोंहे पार उतारो नहिं पन जात टरो ॥
कविता कोश में सूरदास
|