भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:00, 1 जनवरी 2010 का अवतरण (अंत (मृत्यु-बोध) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर अंत / मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
समर —
अब कहाँ है ?
सफ़र —
अब कहाँ है ?
थम गया सब
बहता उछलता नदी-जल तरल,
जम गया सब —
नसों में रुधिर की तरह !
दर्द से
देह की हड्डियाँ सब
चटखती लगातार,
अब कौन
इन्हें दबाए
टूटती आख़िरी साँस तक ?
अँधेरे-अँधेरे घिरे
जब न कोई
पास तक !
लहर अब कहाँ
एक ठहराव है,
ज़िन्दगी अब —
शिथिल तार;
बिखराव है !