भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम में-4 / निशांत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:56, 15 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशांत |संग्रह= }} <Poem> तुम कहो फूल मैं फूल बन जाता ह...)
तुम कहो फूल
मैं फूल बन जाता हूँ
तुम कहो हवा
मैं हवा बन जाता हूँ
तुम कहो तितली
मैं तितली बन जाता हूँ
अब
तुम कुछ मत कहो
अब
मैं फूल हवा और तितली हूँ ।