Last modified on 24 मई 2009, at 16:36

जब भी तन्हाई से घबरा के / सुदर्शन फ़ाकिर

जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं

हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं