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काँपती किरनें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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काँपती किरनें
पड़ीं जब ताल के जल में।
लहरों का
तन कोरा
पावन हुआ पल में।
बूढ़ा वट
यह देखकर
अनमाना-सा हो गया
जब साँझ डूबी
चांद था
उतरा किनारे।
टाल भरकर
थाल में
लाया सितारे।
चांद की
पलकें झुकीं कि
एक सपना खो गया।
डालियों पर
रात उतरी
खामोश अम्बर।
शीतल हवा ने
जब छाप छोड़ी
भाल पर।
पल में
संताप तन का
और मन का सो गया।