भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लेकिन खुदा से पूछिए / विजय वाते

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:32, 29 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} पूछिए, सब कुछ ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूछिए, सब कुछ हवा से पूछिए|
खेरियत, लेकिन खुदा से पूछिए|

रेल कितना कुछ हमारा ले गई,
लक्ष्मण की उर्मिला से पूछिए|

वायदों के रंग से कितने मधुर,
ये किसी बुढे पिता से पूछिए|

वो हरे सिग्नल लगे कितने निठुर,
फिक्र में डूबी दुआ से पूछिए|

जानकी कैसे रही उद्यान में,
रामजी की मुद्रिका से पूछिए|