रचनाकार: ग़ालिब
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें
चल निकलते जो मैं पिये होते
क़हर हो या बला हो, जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिये होते
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिये होते
आ ही जाता वो राह पर "ग़ालिब"
कोई दिन और भी जिये होते