Last modified on 17 जुलाई 2010, at 04:44

चिड़या की बोली लिखो / मोहन आलोक

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:44, 17 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>चिड़या की बोली लिखो फूल का रंग लिखो निःशब्द । कलम कोअ आंखों से प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चिड़या की बोली लिखो
फूल का रंग लिखो
निःशब्द ।

कलम कोअ आंखों से पकड़ो
बनाओ
आकाश को कागज ।

नजर को तीर की तरह गड़ाओ
और बींध दो
बादलों के पीछे के
बादल
उन बादलों के भी
पार के बादल ।

चिड़या की बोली लिखो
फूल का रंग लिखो
निःशब्द ।

अनुवाद : नीरज दइया