भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूब / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 22 मई 2007 का अवतरण
रचनाकारः शमशेर बहादुर सिंह
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
मोटी, धुली लॉन की दूब,
- साफ़ मखमल की कालीन।
- साफ़ मखमल की कालीन।
ठंडी धुली सुनहरी धूप।
हलकी मीठी चा-सा दिन,
मीठी चुस्की-सी बातें,
मुलायम बाहों-सा अपनाव।
पलकों पर हौले-हौले
तुम्हारे फूल से पाँव
- मानो भूलकर पड़ते
- हृदय के सपनों पर मेरे!
- मानो भूलकर पड़ते
अकेला हूँ आओ!