भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज तो मन अनमना / रामकुमार कृषक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 20 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |संग्रह= }} आज तो मन अनमना गाता नहीं खुद ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज तो मन अनमना गाता नहीं

खुद बहल औरों को बहलाता नहीं


आदमी मिलना बहुत मुश्किल हुआ

और मिलता है तो रह पाता नहीं


गलतियों पर गलतियाँ करते सभी

गलतियों पर कोई पछताता नहीं


दूसरों के नंगपन पर आँख है

दूसरों की आँख सह पाता नहीं


मालियों की भीड़ तो हर ओर है

किंतु कोई फूल गंधाता नहीं


सामने है रास्ता सबके मगर

रास्ता तो खुद कहीं जाता नहीं


धमनियों में खून के बदले धुआँ

हड्डियाँ क्यों कोई दहकाता नहीं