भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
‘मैं’ सिर्फ ‘मैं’ नहीं / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 15 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=मार प्यार की थापें / के…)
‘मैं’
सिर्फ ‘मैं’ नहीं है इस ‘मैं’ में;
तमाम-तमाम लोग हैं दुनिया भरके
इस ‘मैं’ में।
यही है मेरा ‘मैं’-
प्राण से प्यारा ‘मैं’;
यही जीता है मुझे;
इसी को जीता हूँ मैं;
यही जीता है दुनिया को,-
दुनिया के
तमाम-तमाम लोगों को;
इसी को जीती है दुनिया;
इसी को जीते हैं
दुनिया के तमाम-तमाम लोग।
यही है मेरा ‘मैं’-
प्राण से प्यारा ‘मैं’।
रचनाकाल: ०५-०९-१९७८