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‘मैं’ सिर्फ ‘मैं’ नहीं / केदारनाथ अग्रवाल

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‘मैं’
सिर्फ ‘मैं’ नहीं है इस ‘मैं’ में;
तमाम-तमाम लोग हैं दुनिया भरके
इस ‘मैं’ में।

यही है मेरा ‘मैं’-
प्राण से प्यारा ‘मैं’;
यही जीता है मुझे;
इसी को जीता हूँ मैं;
यही जीता है दुनिया को,-
दुनिया के
तमाम-तमाम लोगों को;
इसी को जीती है दुनिया;
इसी को जीते हैं
दुनिया के तमाम-तमाम लोग।

यही है मेरा ‘मैं’-
प्राण से प्यारा ‘मैं’।

रचनाकाल: ०५-०९-१९७८