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लाचारी / रमानाथ अवस्थी
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न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है
- हृदय से कहता हूँ कुछ गा
- प्राण की पीड़ित बीन बजा
- प्यास की बात न मुँह पर ला
- हृदय से कहता हूँ कुछ गा
यहाँ तो सागर खारी है
न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है
- सुरभि के स्वामी फूलों पर
- चढ़ये मैंने जब कुछ स्वर
- लगे वे कहने मुरझाकर
- सुरभि के स्वामी फूलों पर
ज़िन्दगी एक खुमारी है
न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है
- नहीं है सुधि मुझको तन की
- व्यर्थ है मुझको चुम्बन भी
- अजब हालत है जीवन की
- नहीं है सुधि मुझको तन की
मुझे बेहोशी प्यारी है
न जाने क्या लाचारी है
आज मन भारी-भारी है