Last modified on 12 दिसम्बर 2010, at 11:20

रोशनी / मधुप मोहता

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:20, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> रात, हर रात बहुत दे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक-सी दिया करती है ।

मैं खोल देता हूँ चुपचाप किवाड़,
रोशनी पे सवार तेरी परछाईं,
मेरे कमरे में उतर आती है,
सो जाती है मेरे साथ मेरे बिस्तर पर ।