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रोशनी / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक-सी दिया करती है ।
मैं खोल देता हूँ चुपचाप किवाड़,
रोशनी पे सवार तेरी परछाईं,
मेरे कमरे में उतर आती है,
सो जाती है मेरे साथ मेरे बिस्तर पर ।