जिंदगी में
जहाँ भी
जिस तरह लोग रहते हैं
गंदे नाबदान की तरह
निरंतर बहते हैं,
आदमी होने का
बेजा एहसास करते हैं
दुर्गंध के
माहौल में
दिन-रात कलपते हैं
रचनाकाल: ०२-०९-१९७४
जिंदगी में
जहाँ भी
जिस तरह लोग रहते हैं
गंदे नाबदान की तरह
निरंतर बहते हैं,
आदमी होने का
बेजा एहसास करते हैं
दुर्गंध के
माहौल में
दिन-रात कलपते हैं
रचनाकाल: ०२-०९-१९७४