Last modified on 17 जनवरी 2011, at 21:09

फ़ोड़ा / रतन सिंह ढिल्लों

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:09, 17 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतन सिंह ढिल्लों |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> काली अचकन औ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

काली अचकन और
मेरी
दूध जैसी सफेद
दर्शनी दाड़ी में

गहरे जड़ों वाला
एक फ़ोड़ा
निकल आया है

मैं भीड़ में
ठोडी पर हाथ रखकर
निकलता हूँ ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला