Last modified on 21 जनवरी 2011, at 21:41

मेघकृपा / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

जिन पर मेघों के नयन गिरे
वे सबके सब हो गए हरे ।

       पतझड़ का सुन कर करुण रुदन
       जिसने उतार दे दिए वसन
       उस पर निकले किशोर किसलय
       कलियाँ निकली निकला यौवन ।

जिन पर वसंत की पवन चली
वे सबकी सब खिल गईं कली ।

       सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
       जिसने अपने छायाश्रित जन
       के लिए बनाई मधुर मही
       लख उसे भरे नभ के लोचन ।

लख जिन्हें गगन के नयन भरे
वे सबके सब हो गए हरे ।