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मेघकृपा / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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जिन पर मेघों के नयन गिरे
वे सबके सब हो गए हरे ।
पतझड़ का सुन कर करुण रुदन
जिसने उतार दे दिए वसन
उस पर निकले किशोर किसलय
कलियाँ निकली निकला यौवन ।
जिन पर वसंत की पवन चली
वे सबकी सब खिल गईं कली ।
सह स्वयं ज्येष्ठ की तीव्र तपन
जिसने अपने छायाश्रित जन
के लिए बनाई मधुर मही
लख उसे भरे नभ के लोचन ।
लख जिन्हें गगन के नयन भरे
वे सबके सब हो गए हरे ।