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उम्मीद / मंगलेश डबराल


आँख का इलाज कराने जाते

पिता से दस क़दम आगे चलता हूँ मैं


आँख की रोशनी लौटने की उम्मीद में

पिता की आँखें चमकती हैं उम्मीद से


उस चमक में मैं उन्हें दिखता हूँ

दस क़दम आगे चलता हुआ ।


(1989)