गांव के फलसे पर बैठी
झबरी कुतिया
करती है इंतजार
घसीट कर लाते मवेशी का
मिटेगी आग
पेट की
बदलेगा स्वाद
जीभ का
जोहड़ के पीपल पर
मुंह लटकाए
बैठा है
बूढ़ा बन्दर
रोटी की फिक्र में
उसे पता है
इस बार
नथिये का कलेवा
नहीं जाने वाला
अगुणे खेत में