Last modified on 8 फ़रवरी 2011, at 13:20

रोली / अनिल जनविजय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 8 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आकाश से तोड़कर एक ताज़ा फूल
बढ़ रही हो तुम दुनिया की तरफ़
ओ मेरी नन्हीं बिटिया
ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से हँसो तुम
कि हिलने लगे समूची पृथ्वी
पेड़ों में फूट जाएँ नए कल्ले
नदियों में उतर आएँ पक्षियों के झुँड

ओ नन्हें फूल !
इस्पात बनो तुम
कबूतर बनकर उड़ों
अपने ही डर से ख़ामोश
इस चट्टान के भीतर

1988