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रोली / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
आकाश से तोड़कर एक ताज़ा फूल
बढ़ रही हो तुम दुनिया की तरफ़
ओ मेरी नन्हीं बिटिया
ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से हँसो तुम
कि हिलने लगे समूची पृथ्वी
पेड़ों में फूट जाएँ नए कल्ले
नदियों में उतर आएँ पक्षियों के झुँड
ओ नन्हें फूल !
इस्पात बनो तुम
कबूतर बनकर उड़ों
अपने ही डर से ख़ामोश
इस चट्टान के भीतर
1988