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प्रेम की अमर पुरी (कविता का अंश ) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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प्रेम की अमर पुरी (कविता का अंश )
मुझे प्रेम की अमर पुरी में अब रहने दो।
अपना सब कुछ देकर कुछ आंसू लेने दो,
प्रेम की पुरी जहां रूदन में अमृत झरता,
जहां सुधा का स्त्रोत उपेक्षित सिसकी भरता,
जहां देवता रहते लालायित मरने को,
मुझे प्रेम की अमर पुरी में अब रहने दो।
मुझको चूमो मुझे हृदय के बीच छुपाओ,
मुझको अपने यौवन का श्रंगार बनाओ।