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आहटें / वाज़दा ख़ान

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वे आहटें मुझ तक नहीं आएँगी
वे उजाले के दीये मुझ तक नहीं आएँगे
आते हैं मुझ तक वे काफ़िले जो रेतीली
सरहदों में चला करते हैं

अक्सर रूहें पाँवों के निशान छोड़कर
क़ाफ़िले में ही आगे बढ़ जाती हैं

उन निशानों पर कभी तेज़ हवा ढूहें बनाती है
कभी उन्हें अपने संग उड़ाकर ले जाती है